
पटना, बिहार —
बिहार की राजनीति में एक ऐसा फैसला सामने आया है जिसने सभी को चौंका दिया है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश ने बिना किसी चुनाव में हिस्सा लिए ही मंत्री पद की शपथ ले ली है। यह फैसला राजनीतिक गलियारों में नई चर्चाओं और सवालों को जन्म दे रहा है।
कौन हैं दीपक प्रकाश?
दीपक प्रकाश मूल रूप से महनार के रहने वाले हैं।
उनकी माता स्नेहा लता कुशवाहा, सासाराम से विधायक हैं।
राजनीतिक परिवार से आने के बावजूद, दीपक अभी तक किसी सदन—ना विधानसभा और न ही विधानपरिषद—के सदस्य नहीं रहे हैं।
बिना चुनाव लड़े मंत्री कैसे बने?
बिहार में हाल ही में सरकार गठन के दौरान गठबंधन के समीकरणों में कई बड़े निर्णय लिए गए।
इन्हीं निर्णयों के बीच, RLM के हिस्से में मंत्री पद आया।
पार्टी प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा ने यह जिम्मेदारी अपने बेटे दीपक प्रकाश को सौंप दी।
भारतीय संविधान के अनुसार:
- कोई भी व्यक्ति बिना चुनाव लड़े मंत्री बन सकता है,
- लेकिन छह महीनों के भीतर उसे किसी भी सदन का सदस्य बनना होगा।
यानी आने वाले समय में दीपक को विधान परिषद या विधानसभा की किसी सीट से प्रवेश कराना अनिवार्य होगा।
राजनीतिक रणनीति या परिवारवाद?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी है और परिवारिक भरोसे पर आधारित कदम भी।
- गठबंधन सरकारों में अक्सर विश्वसनीय चेहरा चुनना ज़रूरी होता है।
- कई बार यह चिंता होती है कि विधायक दल बदल सकते हैं या दबाव में आ सकते हैं।
- ऐसे में नेता अपने भरोसेमंद व्यक्ति को आगे लाने का निर्णय लेते हैं।
उपेन्द्र कुशवाहा के इस कदम ने राजनीतिक चर्चाओं को और तेज कर दिया है।
गांधी मैदान की” सभा से सुर्खियों में
शपथ लेने से एक दिन पहले, दीपक प्रकाश ने पटना के गांधी मैदान में आयोजित कार्यक्रम में संबोधन दिया।
यहीं से उनकी चर्चा अचानक तेज हो गई और अगले ही दिन मंत्री पद की शपथ ने इसे और बड़ा बना दिया।
आगे की राह
दीपक प्रकाश को अगले छह महीनों में किसी एक सदन का सदस्य बनना ही होगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि:
- वे विधान परिषद के जरिए सदन में आते हैं,
- या किसी खाली सीट पर उपचुनाव लड़ते हैं।
उनकी राजनीति का अगला अध्याय बिहार की राजनीति में नई दिशा भी तय कर सकता है।
निष्कर्ष
बिना चुनाव लड़े मंत्री बनना संविधान के अनुसार संभव है, लेकिन यह कदम हमेशा चर्चा में रहता है।
दीपक प्रकाश का मंत्री बनना बिहार में एक नया राजनीतिक संदेश देता है—
कि गठबंधन की राजनीति में समीकरण चुनाव से बड़े हो सकते हैं।

